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सीख माँ की काम आये -दिनेश 'रविकर'


गर ग़लत घट-ख़याल आये,
रुत सुहानी बरगलाए 
कुछ कचोटे काट खाए,
रहनुमा भी भटक जाए
वक्त न बीते बिताये,
काम हरि का नाम आये- सीख माँ की  काम आये--
हो कभी अवसाद में जो,
या कभी उन्माद में हो
सामने या बाद में हो,
कर्म सब मरजाद में हो
शर्म  हर औलाद में हो,
नाम कुल का न डुबाये-
काम हरि का नाम आये- सीख माँ  की  काम आये--
कोख में नौ माह ढोई,
दूध का न मोल कोई,
रात भर जग-जग के सोई,
कष्ट में आँखे भिगोई
सदगुणों के बीज बोई
पौध कुम्हलाने न पाए
काम हरि का नाम आये- सीख माँ  की  काम आये--
-दिनेश 'रविकर'

Comments

बहुत प्यारी कविता
Shalini kaushik said…
कोख में नौ माह ढोई,
दूध का न मोल कोई,
रात भर जग-जग के सोई,
कष्ट में आँखे भिगोई
सदगुणों के बीज बोई
पौध कुम्हलाने न पाए
काम हरि का नाम आये- सीख माँ की काम आये--dinesh ji ki sundar lekhni se rachi ye kavita maa ki mahima ka bahut sundar shabdon me varnan kar rahi hai.
anwar jamal ji aapne ise yahan prastut kar bahut hi shandar karya kiya hai.aabhar aapki sundar prastuti.
Unknown said…
कोख में नौ माह ढोई,
दूध का न मोल कोई,
रात भर जग-जग के सोई,
कष्ट में आँखे भिगोई
सदगुणों के बीज बोई
पौध कुम्हलाने न पाए

रविकार जी बेहद भावभीनी कविता बधाई
बहुत-बहुत आभार यशोदे,
दी जो माँ का प्यार |

कहे देवकी पालक माँ की,
महिमा अपरम्पार ||

जमाल साहिब, प्रस्तुतीकरण के लिए आभार ||

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