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एक नाकाम कोशिश माँ हर रात करती है


ये कहानी है एक औरत की..
हुई थी जो कुछ दिनों पहले
हवस का शिकार॥
ये मुर्दा समाज कहता है...
उसका जीना है बेकार
ढकी है आज पूरे कपड़ों में
फिर भी नग्न नजर आती है॥
ये पुरवाई भी
अब नही सुहाती है ॥
देख खुद को आईने में...
लजाती नहीं ..झल्लाती है॥
किया था वादा ..
उसकी गली डोली ले आने का
अब झांकता तक नहीं उस ओर ॥
कॉलेज में हर साल , इनाम
उसके हाथों में समाते नहीं थे
निष्कासित किया जा चुका है
असर दूसरे बच्चो पर पड़ेगा..कहकर
दो साल से टॉप कर रही थी
ये तीसरा साल किताबों से खेल रही थी ॥
हर रात वह चिल्ला उठती है
मारे डर के सो नहीं पाती है...
माँ भाग कर आती है....
पोंछ उसका पसीना समझाती है
उस डर से बाहर निकालती है
पर क्या निकाल पाती है ??
एक नाकाम कोशिश माँ हर रात करती है॥
पानी डाल तन पर अपने
वह रगडती हैं ज़ोरों से ...
उसे दाग़ नजर आते हैं
अपनी देह पर हर कहीं....
पूरा दम लगा के भी वह मिटा नहीं पाती ॥
सहेली उसकी सुख दुःख की संगी
रास्ता भूल चुकी हैं घर का उसके ॥
माँ संग बाज़ार जाए
तो फब्तियां लाश को
मार डालती हैं फिर से एक बार॥
उसकी नग्न पुकार
नग्न हैं उसकी चीत्कार
नग्न देह का दर्द भी अब नंगा हो चुका है॥
हर अनजान शक्ल में ..
दरिंदा नज़र आता हैं
क्या है ये सब?
हमारी बिगड़ती मानसिकता...
या ख़त्म होती मानवीयता॥
क्या इन दरिंदों के घर
कभी बेटियाँ पैदा नहीं होंगीं  ????
-Dimple maheshwari
साभार


Dimple maheshwari

Comments

rongte khade kar dene waali rachna! marmik chitran :-(
Sunil Kumar said…
माँ की मानसिक स्थिति को उस घटना के बाद समझ पाना मुश्किल है निशब्द ..
बहुत मार्मिक रचना| धन्यवाद|
Rachana said…
bhayanak sthiti pr aap ki lekhni ne dard ko bahut achchhe tarike se ukera hai
rachana
Pallavi saxena said…
behad acchi post jivan ka saty kahaa hai aap ne bahut acche sach main koi nahi samjh sakta is dard ko kyunki "jis tan laage wo tan jaane" ...keep writing

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