मां
ज़िन्दगी भर मगर हंसी है मां
दिल है ख़ुश्बू है रौशनी है मां
अपने बच्चों की ज़िन्दगी है मां
ख़ाक जन्नत है इसके क़दमों की
सोच फिर कितनी क़ीमती है मां
इसकी क़ीमत वही बताएगा
दोस्तो ! जिसकी मर गई है मां
रात आए तो ऐसा लगता है
चांद से जैसे झांकती है मां
सारे बच्चों से मां नहीं पलती
सारे बच्चों को पालती है मां
कौन अहसां तेरा उतारेगा
एक दिन तेरा एक सदी है मां
आओ ‘क़ासिम‘ मेरा क़लम चूमो
इन दिनों मेरी शायरी है मां
कलाम : जनाब क़ासिम नक़वी साहब
http://vedquran.blogspot.com/2010/05/mother.html
Comments
सारे बच्चों को पालती है मां
खूब बहेतर सुखन!!
दोस्तो ! जिसकी मर गई है मां
इस शब्द में सारी खुदाई छिपी है --जो चीज इंशान के वश में नही होती हे तभी उसकी कीमत पता चलती है ? सुंदर नज्म---!
बेहतरीन रचना
सारे बच्चों को पालती है मां
बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन
सारे बच्चों को पालती है मां
.... माँ शब्द अपने आप में ही इतना मोहक है और उसपर इतनी खूबसूरत रचना .. सुन्दर