प्रिय बेटी,
आज जब से मैंने यह समाचार पढ़ा है कि ‘देश में हर साल सात लाख लड़कियां गर्भ में ही माता-पिता द्वारा मार दी जाती हैं’,मेरा मन अत्यधिक व्याकुल है. मैं चाह कर भी अपने आप को रोक नहीं पा रही हूँ इसलिए यह खत लिख रही हूँ ताकि अपने मन की पीड़ा को कुछ हद तक शांत कर सकूँ…..बस मेरी तुमसे एक गुज़ारिश है कि मेरा पत्र पढकर नाराज़ नहीं होना. लगता है कि जैसे मैं बौरा गई हूँ तभी तो यह कह बैठी कि पत्र पढकर मुझसे नाराज़ नहीं होना?हकीकत तो यह है कि मैंने तुमसे इस पत्र को पढ़ने तक का अधिकार छीन लिया है. मैं चाहती तो पत्र की शुरुआत में तुम्हें मुनिया,चंदा,गरिमा या फिर मेरे दिल के टुकड़े के नाम से भी संबोधित कर सकती थी परन्तु मैंने तो नाम रखने का अधिकार तक गवां दिया.बेटा मैं भी उन अभागन माँओं में से एक हूँ जिन्होंने अपनी लाडली को अपने पति और परिवार के ‘पुत्र मोह’ में असमय ही ‘सजा-ए-मौत’ दे दी.तुम्हारे कोख में आते ही मेरा दिल उछाले मारने लगा था और मुझे भी माँ होने पर गर्व का अहसास हुआ था.पहली बार तुमने ही मुझे यह मधुर अहसास और गर्व की अनुभूति कराई थी परन्तु मुझे क्या पता था कि यही गर्व मेरे लिए अभिशाप बन जायेगा और मैं भविष्य में तुम्हें, तुम्हारे नाम से भी पुकारने का अधिकार खो दूंगी.जैसे ही डॉक्टर मैडम ने तुम्हारे होने की सूचना दी और मैंने तुम्हारे भविष्य के सपने बुनने शुरू कर दिए.मैं तुम्हें कल्पना चावला,मदर टेरेसा,इंदिरा गाँधी जैसा कुछ बनाना चाहती थी पर यदि तुम ऐश्वर्य राय,प्रियंका चोपड़ा या सानिया/सायना जैसी भी बनाना चाहती तो भी मुझे कोई आपत्ति नहीं होती क्योंकि इनके जरिये भी कम से कम तुम मेरे दबे कुचले अरमानों को पूरा करती.तब तक मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे लिए बुने जा रहे मेरे ये ख़्वाब बस सपने ही बनकर रह जायेंगे और तुम्हारे दादा-दादी और पापा के मान की खातिर मुझे तुम्हारा चेहरा देखना तक नसीब नहीं होगा.हाँ, मैं इतना दावा तो कर ही सकती हूँ कि तुम बिलकुल मेरी परछाईं होती-मेरी तरह ही बेहद खूबसूरत.वैसे तुम पिता का अक्स होती तब भी काफी सुंदर लगती. दरअसल लंबे-चौड़े कारोबार के कारण पिता और दादा वारिस चाहते थे और हमारे समाज में आज तक बेटी को वारिस नहीं माना जाता.परंपरा की मारी दादी भी उनके साथ खड़ी नज़र आई तो मेरा रहा-सहा मनोबल भी टूट गया.आखिर कम पढ़ी-लिखी और गरीब परिवार से अमीरों में ब्याहकर आई तुम्हारी माँ न तो घर छोड़ने का साहस दिखा सकती थी और न अपने गरीब माँ-बाप पर बुढ़ापे में बोझ बन सकती थी.अन्तः वही हुआ जो घर के सभी सदस्य (तब बहू को सदस्य नहीं माना जाता था) चाहते थे और तुम अजन्मी ही रह गई.आज जब सात लाख बेटिओं को मार डालने का समाचार पढ़ा तो मेरा दिल जार-जार रोने लगा क्योंकि मैं भी तो इन हत्यारी माँओं में से एक हूँ. आज इतनी हिम्मत जुटाकर यह पत्र इसलिए लिख रही हूँ कि मैं तो शायद चाहकर भी तुम्हें न बचा पाई पर इस पत्र के माध्यम से अपनी जैसी माँओं के दिल का हाल सबके सामने ला सकूँ और उनके परिवारों को शर्मिन्दिगी का अहसास कराकर तुम जैसी कुछ बेटिओं को जीने का अधिकार दिला सकूँ ताकि भविष्य में और कोई कल्पना/प्रियंका/इंदिरा उम्मीदों पर खरी उतरने और आसमान में अपने हिस्से की उड़ान पूरी करने के पहले ही विदा न हो सके…
तुम्हारी हत्यारी माँ
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शुक्रिया के साथ
Comments
बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
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umda lekhni achchha subject.
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