Skip to main content

अब गर्भाशय प्रत्यारोपण जल्द होगा संभव

लंदन। उन महिलाओं के लिए खुशख़बरी है जो किन्हीं कारणों से गर्भाशय में हुई बीमारी की वजह से संतान सुख से वंचित हैं। स्वीडन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ गोटेनबर्ग के डाक्टरों ने दावा किया है कि अगले साल से गर्भाशय का प्रत्यारोपण संभव हो सकेगा। उन्होंने यह दावा प्रयोग के दौरान कई जानवरों में गर्भ को सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित करने के बाद किया है।
ब्रिटिश अख़बार डेली मेल ने प्रमुख शोधकर्ता प्रोफ़ेसर मैटस ब्रान्नस्टॉर्म के हवाले से ख़बर दी है कि अगले साल वे अन्य अंगों की तरह गर्भ को भी प्रत्यारोपित कर पाएंगे। मैटस ने कहा कि इस भविष्यवाणी से उन हज़ारों महिलाओं में एक नई आस जग गई है जिनकी गर्भ धारण करने की उम्र बीत गई है या फिर किसी बीमारी के कारण उनका गर्भाशय निकाल दिया गया है।
वैज्ञानिकों की इस टीम ने इससे पहले चूहे, भेड़ और सुअर में इसका सफल परीक्षण किया है। अब उन्हें महिलाओं में ऐसी ही सफलता मिलने की आशा है। इस शोध का निष्कर्ष जर्नल ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनोकोलोजी पत्रिका के नवीनतम अंक में प्रकाशित हुआ है। ग़ौरतलब है कि गर्भाशय का पहला प्रत्यारोपण सऊदी अरब में साल 2000 में हुआ था लेकिन वह सफल नहीं हुआ था। वैज्ञानिकों के अनुसार उस समय असफल होने का कारण गर्भाशय को पूरी तरह से रक्तसंचार प्रणाली से जोड़ नहीं पाना था लेकिन अब ऐसा नहीं है। शुरूआत में यह सुविधा केवल दस अस्पतालों में ही मिलेगी। गर्भाशय का प्रत्यारोपण अस्थायी होगा।
हिन्दी दैनिक 'हिन्दुस्तान' , प. १५, २७-३-२०११

Comments

Minakshi Pant said…
खुबसूरत जानकारी के लिए शुक्रिया |
Learn By Watch said…
सुबह अखबार में पढ़ी थी यह खबर, खुशखबरी है

क्या आपने अपने ब्लॉग से नेविगेशन बार हटाया ?
Shah Nawaz said…
एक अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने, लेकिन इंसान जितनी तरक्की कर रहा है उतने ही कम्लिकेशन जुड़ते जा रहे हैं जीवन में...
Achchha samachar haae ! mahilaao ko aek khush khbri..

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ

माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.

माँ को घर से हटाने का अंजाम औलाद की तबाही

मिसालः‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ आज दिनांक 26 नवंबर 2013 को विशेष सीबीाआई कोर्ट ने ‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ में आरूषि के मां-बाप को ही उम्रक़ैद की सज़ा सुना दी है। फ़जऱ्ी एफ़आईआर दर्ज कराने के लिए डा. राजेश तलवार को एक साल की सज़ा और भुगतनी होगी। उन पर 17 हज़ार रूपये का और उनकी पत्नी डा. नुपुर तलवार पर 15 हज़ार रूपये का जुर्माना भी लगाया गया है। दोनों को ग़ाजि़याबाद की डासना जेल भेज दिया गया है। डा. नुपुर तलवार इससे पहले सन 2012 में जब इसी डासना जेल में बन्द थीं तो उन्होंने जेल प्रशासन से ‘द स्टोरी आॅफ़ एन अनफ़ार्चुनेट मदर’ शीर्षक से एक नाॅवेल लिखने की इजाज़त मांगी थी, जो उन्हें मिल गई थी। शायद अब वह इस नाॅवेल पर फिर से काम शुरू कर दें। जेल में दाखि़ले के वक्त उनके साथ 3 अंग्रेज़ी नाॅवेल देखे गए हैं।  आरूषि का बाप राकेश तलवार और मां नुपुर तलवार, दोनों ही पेशे से डाॅक्टर हैं। दोनों ने आरूषि और हेमराज के गले को सर्जिकल ब्लेड से काटा और आरूषि के गुप्तांग की सफ़ाई की। क्या डा. राजेश तलवार ने कभी सोचा था कि उन्हें अपनी मेडिकल की पढ़ाई का इस्तेमाल अपनी बेटी का गला काटने में करना पड़ेगा?