माँ तू कितनी अच्छी है
तू कितनी भोली है
प्यारी -प्यारी है
हमारे घर की दुलारी है
हमरी बगिया की माली है
हम को बोया तुने
हम को सींचा तुने
फिर हम मे खाद डाली
आज हम पेड़ बन चुके है
फल -फूल से लद चुके है
हम रे जीवन मै बहार लाने वाली तू
हम को हर पतझड़ से बचाने वाली तू
खिज़ा से हम को तू ने बचाया
बहारो से हम को तू ने मिलवाया
तेरी छाया पाकर हम परवान चढ़ गए
तेरे साए में रहकर हम निहाल हो गए
हर दुःख से हम को लड़ना तू ने सिखाया
हर मुश्किल से हम को उबरना तू ने सिखाया
मंजिल पर हम को आगे बड़ना तू ने सिखाया
हम तेरे कर्जदार है यह कर्ज केसे उतारे
बस !यही उलझन है तू आ के बतला दे --
आज आँखे तेरे दीदार को तरस रही है
क्योकि तू हम को छोड़ कर स्वर्ग में बस रही है !
Comments
माँ का कर्ज उतारना तो असम्भव है| धन्यवाद|
देख कर ख़ामोश बच्चे को तड़प जाती है माँ
ज़िदगी भर खुश रहे बच्चा मेरा , ये सोच कर
अच्छी से अच्छी बहू खुद ढूँढ कर लाती है माँ
डिग्रियां दिलवाईं जिन को , अपने अरमान बेच कर
अब उन्हीं की बीवियों की झिड़कियां खाती है माँ
सबको देती है सुकूँ और खुद ग़मों की धूप में
रफ़्ता रफ़्ता बर्फ़ की सूरत पिघल जाती है माँ
आपकी पोस्ट अच्छी है और आप तब लिखती हैं जबकि दूसरों की चार पोस्ट आ चुकी होती है लिहाज़ा मैं आपकी खिदमत में आज एक के बजाय चार शेर पेश करता हूँ .
माँ हु , सारी जुमेदारीया निबाहनि पड़ती है--धन्यवाद !
देर से ही सही दुरस्त तो हे !
आप यह बताएं कि
आप अभी तक माँ ही हैं या नानी और दादी भी कहलाती हैं ?
कभी आपको वक़्त मिले तो इस ब्लॉग पर भी एक नज़र डालियेगा .
http://www.mankiduniya.blogspot.com/
Aap ki baat sahee hai Darshan jee !!
हमें ख़ुशी होती अगर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनकर 'प्यारी माँ' के लिए कुछ कहतीं .
क्या आप इस अभियान में कुछ योगदान करना चाहेंगी ?
पर जो भी लिखतीं है बहुत ही सुन्दर लिखतीं हैं...
'अपनी बेटी को किसी घर की बहू बनाने से पहले या फिर किसी लड़की को अपने घर की बहू बनाने से पहले उन्हें भी देखा जाता है और उनकी फ़ैमिली को भी और उनके ‘फ़ैमिली बैकग्राउंड‘ को भी। फ़ैमिली बैकग्राउंड में परिवार की सभी उपलब्धियां आ जाती हैं। इसमें उसकी वंशावली और उसका इतिहास भी आता है और समाज में उसकी मौजूदा हैसियत और कैफ़ियत भी आ जाती है कि समाज में उसकी शोहरत अच्छी है या ख़राब है। यह फ़ैमिली बैकग्राउंड न तो एक दिन में बनता है और न ही कोई एक आदमी इसे बनाता है बल्कि इसमें परिवार के पूर्व और मौजूदा सभी सदस्यों का योगदान होता है और किसी भी परिवार की सोच-विचार और आचरण को जानने का यह एक बेहतरीन तरीक़ा है। जो परिवार इस पैमाने पर पूरे उतरते हैं, उन्हें समाज में इज़्ज़तदार और शरीफ़ ख़ानदान माना जाता है। ऐसे लोगों से जुड़ने की ख्वाहिश में ही आदमी फ़ैमिली बैकग्राउंड के बारे में पता करता है।'
backdoor entry - laghu katha
वास्तव में माँ का ऋण कोई नहीं छुका सकता
.......मेरी माँ ओ स्नेहमई मा~<
तेरा ऋण क्या चुका सकूँगा मेरी माँ...
नो मास तक कठिन तपस्या
मेरे ही कारण तो की थी
विपदाओं को तुने चुनौती
मेरे ही कारण तो दी थी
अपने रक्त का खून बनाकर
किया था मेरा पालन पोषण
उस ही रक्तदान को कैसे
भुला सकूँगा
मेरी माँ...........!!