जब-जब आंसू भरे आँखों में |
तब-तब कमी तुम्हारी खटकी माँ,
काश ! कि तुम होती तो कहती ---
मोती व्यर्थ लुटाओ न ----?
जब -जब गायन के सुर साघे |
जब -जब तन्मय हो तान उठाई |
तब -तब कमी तुम्हारी खटकी माँ,
काश ! कि तुम होती तो कहती---
इक बार फिर से गाओ न ---?
जब -जब गीत बनाया कोई--|
जब-जब सस्वर पाठ किया --|
तब-तब कमी तुम्हारी खटकी माँ,
काश ! कि तुम होती तो कहती ---
बेटा ,फिर से दोहराओ न ---?
Comments
तब-तब कमी तुम्हारी खटकी माँ,
काश ! कि तुम होती तो कहती ---
मोती व्यर्थ लुटाओ न ----?
बहुत ही सुन्दर
माँ को समर्पित यह रचना बेहद अच्छी लगी
आभार
मैं अपनी उम्र से छोटा दिखाई देता था
आपकी रचना मैंने अपनी वाइफ़ को पढ़कर सुनाई तो वह बोलीं कि
'इंसान को माँ की जरूरत हर उम्र में रहती है '
सन 1997 में ईद के दिन उनकी वालिदा मोहतरमा का कैंसर की बीमारी से इंतक़ाल हो गया था । उनके 2 छोटी बहनें और एक छोटा भाई है जिसकी वजह से उनके वालिद साहब को 2 महीने बाद ही दिल्ली की एक तलाक़शुदा औरत से शादी करनी पड़ी और फिर वे अपनी बेटी की शादी मुझसे करके वापस Riyadh चले गए। वे पहले से ही वहीं रहते थे और यहाँ केवल अपनी बेटी की शादी करने के लिए आए थे ।
बेटा ,फिर से दोहराओ न ---?
बहुत ही भावमय करते शब्द ।