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मिटा दी अपनी काया....

हमने जब जब माँ को देखा
   ख्याल ये मन में आया.
हमें बनाने को ही माँ ने
   मिटा दी अपनी काया.
बचपन में माँ हाथ पकड़कर
   सही बात समझाती
गलत जो करते आँख दिखाकर
   अच्छी डांट पिलाती.
माँ की बातों पर चलकर ही
   जीवन में सब पाया
हमें बनाने को ही माँ ने
  मिटा दी अपनी काया.
समय परीक्षा का जब आता
   नींद माँ की उड़ जाती
हमें जगाने को रात में
   चाय बना कर लाती
माँ का संबल पग-पग पर
   मेरे काम है आया.
हमें बनाने को ही माँ ने
  मिटा दी अपनी काया.
जीवन में सुख दुःख सहने की
  माँ ने बात सिखाई,
सबको अपनाने की शिक्षा
  माँ ने हमें बताई.
कठिनाई से कैसे लड़ना
  माँ ने हमें सिखाया.
हमें बनाने को ही माँ ने
  मिटा दी अपनी काया.
                  [http ://shalinikaushik2 .blogspot .com ]

Comments

DR. ANWER JAMAL said…
मेरी माँ ने भी ऐसे ही खुद को मिटाया और मुझे बनाया ।
आपने सच कहा ।
शिखाजी,आपकी कविता बहुत ही प्यारी और सीधी -साधी होती हे मुझे ऐसे ही सीधे- साधे शब्द पसंद हे --बधाई |
Shikha Kaushik said…
bahut sundar abhivyakti .shalini ji bahut bahut aabhar maa ! ke prati in bhavon ko jagane ke liye .
सदा said…
बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द इस अभिव्‍यक्ति के ।
maa shiksha ki pahli sidhi hoti hai ...
vandana gupta said…
एक एक शब्द सच को बयाँ कर रहा है।

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