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क्या लिखूं?

मम्मी के लिए कुछ मुक्कमल लिखना नामुमकिन है... कहीं न कहीं कोई न कोई कमी रह ही जाएगी... कुछ कहने की कोशिश करूँ भी तो कहाँ से शुरू करूँ और कहाँ ख़त्म, यह नहीं पता... शुरुआत कुछ सवालों से कर रही हूँ.... उसी से पूछ कर...

तुम्हारे बारे में क्या लिखूं?
तुम्हारी डांट या मोहब्बत लिखूं?

वो मार लिखूं जो अब तक राह दिखाती है,
या मार के बाद रोते हुए गले लगाने की आदत लिखूं?

बच्चों के साथ तुम्हारा प्यार लिखूं,
या बुजुर्गों की खिदमत लिखूं?

अरहर की दाल हो या पौधीने की चटनी,
या फिर ज़िन्दगी में तुमसे बढती लज्ज़त लिखूं?

बरकतों की पोटली लिखूं,
या कुदरत की इनायत लिखूं?

तुम्हारी सादगी लिखूं,
या उस सादगी में छिपी तुम्हारी ताकत लिखूं?

चालीस साल के हमसफ़र के जाने का ग़म लिखूं
या उसके चले जाने के बाद तुम्हारी हिम्मत लिखूं?

बेदाग़ आँचल सी उम्र लिखूं,
या ज़िन्दगी भर की इबादत लिखूं?

आई लिखूं, मम्मी लिखूं, प्यारी माँ लिखूं,
या बस खुदा की सूरत लिखूं? 

...............

Comments

सच मे माँ के लिये कुछ भी लिखना बहुत मुश्किल है भावमय सुन्दर कविता के लिये बधाई।
POOJA... said…
"माँ"...उनके लिये तो इतनाही काफी है...
बहुत ही प्यारे सवाल... धन्यवाद...
Sodagar's said…
क्या बात कही है! वाह!
Shalini kaushik said…
आपकी प्रस्तुति प्रशंसनीय है.
DR. ANWER JAMAL said…
अपने सीने पर रखे है कायनाते ज़िंदगी
ये ज़मीं इस वास्ते ऐ दोस्त कहलाती है माँ

Nice post.
Kanta Dayal said…
bas gudia yeansu na padhne de rahe hen na likhne.
सदा said…
वाह ....बहुत ही सुन्‍दर भावों से सजी बेहतरीन अभिव्‍यक्ति मां के बारे में लिखना ...शायद ऐसा ही होता है ।
vandana said…
Very touching, I just salute you. Thanks for written such kind of poem
Sadhana Vaid said…
एक बहुत ही भावपूर्ण, प्रशंसनीय एवं बेमिसाल रचना ! दुनिया की किसी भी भाषा के शब्द बौने पड़ जायेंगे जब वो एक 'माँ' को परिभाषित करना चाहेंगे ! बहुत ही ख़ूबसूरत रचना ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
माँ तो बस माँ है ......क्या लिखें

बहुत ही भावुक abhivyakti.

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