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अद्भुत शिक्षा !






सब पूछते हैं-आपका शुभ नाम?

शिक्षा?= .......

क्या लिखती हैं?= .....

हमने सोचा - आप स्नातक की छात्रा हैं... !!!

मैं उत्तर देती तो हूँ,
परन्तु ज्ञात नहीं,
वे मस्तिष्क के किस कोने से उभरते हैं!
मैं?
मैं वह तो हूँ ही नहीं।
मैं तो बहुत पहले
अपने तथाकथित पति द्वारा मार दी गई
फिर भी,
मेरी भटकती रूह ने तीन जीवन स्थापित किये!
फिर अपने ही हाथों अपना अग्नि संस्कार किया
मुंह में डाले गंगा जल और राम के नाम का
चमत्कार हुआ
............अपनी ही माँ के गर्भ से पुनः जन्म लेकर
मैं दौड़ने लगी-
अपने द्वारा लगाये पौधों को वृक्ष बनाने के लिए
......मैं तो मात्र एक वर्ष की हूँ,
अपने सुकोमल पौधों से भी छोटी!
शुभनाम तो मेरा वही है
परन्तु शिक्षा?
-मेरी शिक्षा अद्भुत है,
नरक के जघन्य द्वार से निकलकर
बाहर आये
स्वर्ग की तरह अनुपम,
अपूर्व,प्रोज्जवल!!

Comments

बेहद खुबसुरत कविता लिखी हे आपने --जीवन -मृत्यु के बीच डोलता यह जीवन बेहद खुबसुरत अभिव्यक्ति हे |
vandana gupta said…
गज़ब की बेहद गहन और यथार्थ अभिव्यक्ति।
मेरी शिक्षा अद्भुत है,
नरक के जघन्य द्वार से निकलकर
बाहर आये
स्वर्ग की तरह अनुपम,
अपूर्व,प्रोज्जवल!

बहुत गहन चिंतन
Anonymous said…
nice post.
rashmi ravija said…
बेहद ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति
DR. ANWER JAMAL said…
आपकी रचना पढ़ी और फिर मैंने अपना दिल टटोला तो वहाँ कोई शब्द मुझे न मिला सिवाय एक आह के, जिस नर्क से आप गुज़री हैं, जब तक मेरी आत्मा पर उसका अंश न गुज़रे तब तक मैं उस पीड़ा को भला कैसे महसूस कर सकता हूं जो कि आप व्यक्त कर रही हैं ?
अभी मैं चाहूंगा कि पहले आपकी पीड़ा के किसी अंश को महसूस कर सकूं , कुछ कहने की नौबत चाहे आए या न आए ।
मेरी भटकती रूह ने तीन जीवन स्थापित किये , मैं बस वही थी....माँ ही तो !
क्या -क्या अनदेखा नहीं गुजर गया है आँखों के आगे...माँ तुझे प्रणाम !
aapki sikshha sachmuch adbhut hai..:)
pata nahi kaise aisee soch le aate ho..!!
सदा said…
अपनी ही माँ के गर्भ से पुनः जन्म लेकर
मैं दौड़ने लगी-
अपने द्वारा लगाये पौधों को वृक्ष बनाने के लिए

बहुत ही गहन भावों को समेटे यह पंक्तियां ..।
जीवन के गहन तजुर्बों को समेटे हुए सुन्दर कविता ...
Minakshi Pant said…
बहुत खुबसूरत रचना !

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