माँ की महिमा अनंत है कितना ही कह लो हमेशा अधूरी ही रहेगी ...........क्या माँ के प्यार को शब्दों में बांधा जा सकता है ? उसके समर्पण का मोल चुकाया जा सकता है ? जैसे ईश्वर को पाना आसान नहीं उसी तरह माँ के प्यार की थाह पाना आसान नहीं क्यूँकि माँ इश्वर का ही तो प्रतिरूप है फिर कैसे थाह पाओगे? कैसे उसका क़र्ज़ चुकाओगे?
माँ के प्रति सिर्फ फ़र्ज़ निभाए जाते हैं , क़र्ज़ नहीं चुकाए जा सकते . माँ के भावों को समझा जाता है उसके त्याग का मोल नहीं लगाया जा सकता ...........उसको उसी तरह उम्र के एक पड़ाव पर सहेजा जाता है जैसे वो तुम्हें संभालती थी जब तुम कुछ नहीं कर सकते थे ...........जानते हो जैसे एक बच्चा अपनी उपस्थिति का अहसास कराता है .........कभी हँसकर , कभी रोकर , कभी चिल्ला कर , कभी किलकारी मारकर......... उसी तरह उम्र के एक पड़ाव पर माँ भी आ जाती है जब वो अकेले कमरे में गुमसुम पड़ी रहती है और कभी -कभी अपने से बातें करते हुए तो कभी हूँ , हाँ करते हुए तो कभी हिचकी लेते तो कभी खांसते हुए अपने होने का अहसास कराती है और चाहती है उस वक्त तुम रुक कर उससे उसका हाल पूछो , दो शब्द उससे बोलो कुछ पल उसके साथ गुजारो जैसे वो गुजारा करती थी और तुम्हारी किलकारी पर , तुम्हारी आवाज़ पर दौड़ी आया करती थी और तुम्हें गोद में उठाकर पुचकारा करती थी , तुमसे बतियाती थी ........ऐसे ही तुम भी उससे कुछ पल बतियाओ , उसकी सुनो चाहे पहले कितनी ही बार उन बातों को तुम सुन चुके होते हो पर उसे तो याद नहीं रहता ना तो क्या हुआ एक बार और सही .........उसने भी तो तुम्हारे एक ही शब्द को कितनी बार सुना होगा , जब समझ नहीं आता होगा मगर तब भी उस शब्द में तुम्हारी भाषा समझने की कोशिश करती होगी ना ............वैसे ही क्या तुम नहीं सुन सकते ? क्या कुछ पल का इन छोटे छोटे लम्हों में उसे सुकून नहीं दे सकते ? बताओ क्या तुम ऐसा कर पाओगे ? नहीं , तुम ऐसा कभी नहीं कर पाओगे. तुम्हारे पास वक्त ही कहाँ है ? तुम तो यही उम्मीद करते हो कि इतनी उम्र हो गयी माँ की मगर अक्ल नहीं है कब क्या कहना है .........ज़रा सी बात पर ही दुत्कार दोगे ...........बहुत मुश्किल है माँ होना और बहुत आसान है बेटा बनना ...............ये तो एक बानगी भर है उसने तो अपनी ज़िन्दगी दी है तुम्हें ...........अपने लहू से सींचा है ..........क्या कभी भी कोई भी बेटा या बेटी इसका मोल चुका सकते हैं ? क्या कभी भी मातृॠण से उॠण हो सकते हैं ? ये तो सिर्फ अपना फ़र्ज़ भी ढंग से निभा लें और माँ को प्यार से दो रोटी दे दें दो मीठे बोल बोल दें और थोडा सा ध्यान दे दें तो ही गनीमत है .............इतना करने में भी ना जाने कितने अहसान उस बूढी काया पर डाल दिए जायेंगे और वो अकेली बैठी दीवारों से बतियाएगी मगर अपना दुःख किसी से ना कह पाएगी आखिर माँ है ना ........कैसे अपने ही बच्चों के खिलाफ बोले ................हर दर्द पी जायेगी और ख़ामोशी से सफ़र तय कर जायेगी ..........जाते जाते भी दुआएँ दे जायेगी .........बस यही होती है माँ ..........जिसके लिए शब्द भी खामोश हो जाएँ .
माँ के प्रति सिर्फ फ़र्ज़ निभाए जाते हैं , क़र्ज़ नहीं चुकाए जा सकते . माँ के भावों को समझा जाता है उसके त्याग का मोल नहीं लगाया जा सकता ...........उसको उसी तरह उम्र के एक पड़ाव पर सहेजा जाता है जैसे वो तुम्हें संभालती थी जब तुम कुछ नहीं कर सकते थे ...........जानते हो जैसे एक बच्चा अपनी उपस्थिति का अहसास कराता है .........कभी हँसकर , कभी रोकर , कभी चिल्ला कर , कभी किलकारी मारकर......... उसी तरह उम्र के एक पड़ाव पर माँ भी आ जाती है जब वो अकेले कमरे में गुमसुम पड़ी रहती है और कभी -कभी अपने से बातें करते हुए तो कभी हूँ , हाँ करते हुए तो कभी हिचकी लेते तो कभी खांसते हुए अपने होने का अहसास कराती है और चाहती है उस वक्त तुम रुक कर उससे उसका हाल पूछो , दो शब्द उससे बोलो कुछ पल उसके साथ गुजारो जैसे वो गुजारा करती थी और तुम्हारी किलकारी पर , तुम्हारी आवाज़ पर दौड़ी आया करती थी और तुम्हें गोद में उठाकर पुचकारा करती थी , तुमसे बतियाती थी ........ऐसे ही तुम भी उससे कुछ पल बतियाओ , उसकी सुनो चाहे पहले कितनी ही बार उन बातों को तुम सुन चुके होते हो पर उसे तो याद नहीं रहता ना तो क्या हुआ एक बार और सही .........उसने भी तो तुम्हारे एक ही शब्द को कितनी बार सुना होगा , जब समझ नहीं आता होगा मगर तब भी उस शब्द में तुम्हारी भाषा समझने की कोशिश करती होगी ना ............वैसे ही क्या तुम नहीं सुन सकते ? क्या कुछ पल का इन छोटे छोटे लम्हों में उसे सुकून नहीं दे सकते ? बताओ क्या तुम ऐसा कर पाओगे ? नहीं , तुम ऐसा कभी नहीं कर पाओगे. तुम्हारे पास वक्त ही कहाँ है ? तुम तो यही उम्मीद करते हो कि इतनी उम्र हो गयी माँ की मगर अक्ल नहीं है कब क्या कहना है .........ज़रा सी बात पर ही दुत्कार दोगे ...........बहुत मुश्किल है माँ होना और बहुत आसान है बेटा बनना ...............ये तो एक बानगी भर है उसने तो अपनी ज़िन्दगी दी है तुम्हें ...........अपने लहू से सींचा है ..........क्या कभी भी कोई भी बेटा या बेटी इसका मोल चुका सकते हैं ? क्या कभी भी मातृॠण से उॠण हो सकते हैं ? ये तो सिर्फ अपना फ़र्ज़ भी ढंग से निभा लें और माँ को प्यार से दो रोटी दे दें दो मीठे बोल बोल दें और थोडा सा ध्यान दे दें तो ही गनीमत है .............इतना करने में भी ना जाने कितने अहसान उस बूढी काया पर डाल दिए जायेंगे और वो अकेली बैठी दीवारों से बतियाएगी मगर अपना दुःख किसी से ना कह पाएगी आखिर माँ है ना ........कैसे अपने ही बच्चों के खिलाफ बोले ................हर दर्द पी जायेगी और ख़ामोशी से सफ़र तय कर जायेगी ..........जाते जाते भी दुआएँ दे जायेगी .........बस यही होती है माँ ..........जिसके लिए शब्द भी खामोश हो जाएँ .
Comments
अपने बच्चों की ज़िन्दगी है माँ
ख़ाक जन्नत है इसके क़दमों की
सोच फिर कितनी कीमती है माँ
Nice post.
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
सादर,
डोरोथी.
मेरे ब्लॉग में भी ऐसी ही एक रचना है... देखिएगा... सादर