माँ,अब क्या करोगी?
कैसे लौटाओगी मुझे
उन रास्तों पर,
जो मेरे नहीं थे........
तुम भ्रम का विश्वास देती रही,
जिसे मैं सच्चाई से जीती गई...
जब भी ठेस लगी,
तुमने कहा-'जाने दो,
जो हुआ -यूँ ही हुआ'
ये 'यूँ ही' मेरे साथ क्यों होता है!
तुमने जिन रिश्तों की अहमियत बताई,
उन्होंने मुझे कुछ नहीं माना......
मैं तो एक साधन- मात्र थी माँ
कर्तव्यों की रास से छूटकर
जब भी अधिकार चाहा
खाली हाथ रह गई....
फिर भी,
तुम सपने सजाती गई,
और मैं खुश होती गई..........
पर झूठे सपने नहीं ठहरते
चीख बनकर गले में अवरुद्ध हो जाते हें
और कभी बूँद-बूँद आंखों से बह जाते हें!
इतनी चीखें अन्दर दबकर रह गईं
कि, दिल भर गया
इतने आंसू -कि,
उसका मूल्य अर्थहीन हो गया........
माँ,
ज़माना बदल गया है,
जो हँसते थे तुम्हारे सपनों पर
वे उन्हीं सपनों को लेकर चलने लगे हें
पर कुछ इस तरह,
मानों सपने सिर्फ़ उनके लिए बने थे.........
माँ,
मैंने तुमसे बहुत प्यार किया है,
और माँ,
मैं इस प्यार में जीती हूँ
पर माँ,
मैं तुम्हारे झूठे भ्रम को
अब अपनी पलकों में नहीं सजा पाउंगी,
तुम जो जोड़ने का सूत्र उठाती हो
उसे छूने का दिल नहीं होता........
लोग जीत गए माँ,
मेरा मिसरीवाला घर तोड़ गए
मैं ख़ुद नहीं जानती,
मैं कहाँ खो गई......
माँ,
अब तुम क्या करोगी?
कैसे लौटाकर लाओगी मुझे?
बोलो माँ, बोलो!!!
कैसे लौटाओगी मुझे
उन रास्तों पर,
जो मेरे नहीं थे........
तुम भ्रम का विश्वास देती रही,
जिसे मैं सच्चाई से जीती गई...
जब भी ठेस लगी,
तुमने कहा-'जाने दो,
जो हुआ -यूँ ही हुआ'
ये 'यूँ ही' मेरे साथ क्यों होता है!
तुमने जिन रिश्तों की अहमियत बताई,
उन्होंने मुझे कुछ नहीं माना......
मैं तो एक साधन- मात्र थी माँ
कर्तव्यों की रास से छूटकर
जब भी अधिकार चाहा
खाली हाथ रह गई....
फिर भी,
तुम सपने सजाती गई,
और मैं खुश होती गई..........
पर झूठे सपने नहीं ठहरते
चीख बनकर गले में अवरुद्ध हो जाते हें
और कभी बूँद-बूँद आंखों से बह जाते हें!
इतनी चीखें अन्दर दबकर रह गईं
कि, दिल भर गया
इतने आंसू -कि,
उसका मूल्य अर्थहीन हो गया........
माँ,
ज़माना बदल गया है,
जो हँसते थे तुम्हारे सपनों पर
वे उन्हीं सपनों को लेकर चलने लगे हें
पर कुछ इस तरह,
मानों सपने सिर्फ़ उनके लिए बने थे.........
माँ,
मैंने तुमसे बहुत प्यार किया है,
और माँ,
मैं इस प्यार में जीती हूँ
पर माँ,
मैं तुम्हारे झूठे भ्रम को
अब अपनी पलकों में नहीं सजा पाउंगी,
तुम जो जोड़ने का सूत्र उठाती हो
उसे छूने का दिल नहीं होता........
लोग जीत गए माँ,
मेरा मिसरीवाला घर तोड़ गए
मैं ख़ुद नहीं जानती,
मैं कहाँ खो गई......
माँ,
अब तुम क्या करोगी?
कैसे लौटाकर लाओगी मुझे?
बोलो माँ, बोलो!!!
Comments
बहुत प्यारी रचना...
ले के इक तूफ़ान बेटी से लिपट जाती है माँ
चूमकर माथा , कभी सर और कभी देकर दुआ
कुछ उसूले ज़िंदगी बेटी को समझाती है माँ
ये 'यूँ ही' मेरे साथ क्यों होता है!
बेटी के यह सवाल मां को विचलित कर जाते हैं ...यह सब उनकी लाडली के साथ ही क्यों हुआ गहन भावों के साथ सशक्त प्रस्तुति ।