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माँ कुछ नहीं होती

माँ कुछ नहीं होती 
कहते हैं सब 
माँ वो होती है
जो बच्चे की 
पहली गुरु होती है
कौन मानता है 
कौन समझता है
माँ तो सिर्फ 
जरूरत पर 
प्रयोग की जाने वाली
वस्तु होती है
जिसकी भावनाओं से 
खेला जा सके
अपने आंसुओं से जिसे
पिघलाया जा सके
जिसे रोज ये पाठ 
याद कराया जाए
माँ तो त्याग  और स्नेह 
की प्रतिमूर्ति होती है
और वो इसी भंवरजाल में
उम्र भर उलझी रहे

कहते हैं सब 
माँ वो होती है 
जो भगवान से भी
बढ़कर होती है
मगर कहाँ होती है
अभी जाना किसी ने
जब माँ को घर से निकाल
चौराहे पर खड़ा कर देते हैं 
तब भगवान का कौन सा 
रूप होती है वो   
माँ तो सिर्फ 
वक्ती जरूरत होती है
जब तक हड्डियाँ 
चलती रहती हैं
तभी तक कुछ 
क़द्र होती है
उसके बाद तो 
माँ सिर्फ एक 
घर के कोने में पड़ा
गैर जरूरी सामान होती है 
जो जगह घेरे होती है

वो कहते हैं 
माँ घर की शान होती है
कहाँ होती है ?
कब होती है ?
शायद तभी तक 
जब तक समाज से 
बच्चे की गलती पर भी 
लड़ जाती है पर 
उस पर न आंच आने देती है 
हर गुनाह हर दोष को 
छुपा लेती है जब तक 
तभी तक माँ , माँ होती है
जिस दिन दोष दिखा दिया
उस दिन से माँ की पदवी से
गिरा दिया जाता है
फिर माँ न माँ होती है
वो तो सिर्फ 
मजबूरी का लिहाफ होती है
जिसे फटने पर फेंक दिया जाता है
रिश्तों की दहलीज पर 
खड़ी एक कमजोर 
बेबस , लाचार
कड़ी के सिवा 
और कुछ नहीं होती 
जो तपस्या त्याग 
की मूर्ति कहलाये 
जाने की कीमत चुकाती है 
मगर उफ़ न कर पाती है
इसलिए कहती हूँ 
माँ कुछ नहीं होती

Comments

haan pyaari maa , bhagwaan si maa ke saath yah satya bhi juda hota hai ...
DR. ANWER JAMAL said…
हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आये
जब सूखने लगे तो जलाने के काम आए
इंसान स्वार्थ में अंधा हो गया है !
Bahut hi maarmik ... koi aisa kaise ho sakta hai ...
Shalini kaushik said…
vastvikta se paripoorit.
bahut sundar maarmik prastuti..
sach maa maa hoti hai..
uff..... yeh bhi sach hai..... marmik rachna
सदा said…
बिल्‍कुल सही कहा है आपने ...।
POOJA... said…
kahi ka satya... kadwa satya...
na jane maa ke hi saath aisa kyu hota hai???
kya bhagwaan jaisi maa ka koi mol bhagwaan ki nazaron mein bhi nahi hota???

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