वो नानी वो दादी बन गई हैं ... पदवी बढ़ गई , मूल से प्यारा सूद वाली कहावत चरितार्थ हो गई है ... अब सूद के आगे कुछ कैसे लिखा
जाये ! कलम हाथ में रहेगी नहीं और छन से गिरते शब्द मटकती आँखों के आगे ठिठक जायेंगे और नानी दादी यही कहेंगी ....
शब्द
मेरे संग आंखमिचौली मत खेलो
वो परदे के पीछे छुपी मेरी गुडिया
मेरा गुड्डा
कह रहे हैं - 'मुजे धुन्दो , मे तहां हूँ (मुझे ढूंढो , मैं कहाँ हूँ )
....
ढूँढने के इस खेल में
दौड़ते दौड़ते मेरी कमर दुःख गई
बालों में कंघी करने का वक़्त नहीं
और तुम हसरत से मुझे देखे जा रहे हो !
मैं विवश हूँ
कलम लिया नहीं
कि मेरी गुडिया मेरा गुड्डा
छीन लेंगे
और फिर कहाँ कहाँ रेखाएं बनेंगी
यह तो मत ही पूछो...
मैं सफाई में फंस जाऊँगी !
एक नन्हीं कटोरी में
चार कौर का खाना
दो घंटे में इनको खिलाऊँगी
फिर ईश्वर को धन्यवाद देते हुए
लोरी गाऊँगी ... गाते गाते मेरी पलकें झपक जाएँगी
और धडाम से कुछ गिरने की आवाज़ पर
मैं फिर दौड़ने लगूंगी ....
कितने किस्से सुनाऊं मेरे प्यारे शब्द
मेरा मन करता तो है
कि तुम्हें उठाऊं
पर कहा न
मूल से प्यारे सूद के आगे
बस सोचती रह जाती हूँ !
Comments
चार कौर का खाना
दो घंटे में इनको खिलाऊँगी
फिर ईश्वर को धन्यवाद देते हुए
लोरी गाऊँगी ... गाते गाते मेरी पलकें झपक जाएँगी
और धडाम से कुछ गिरने की आवाज़ पर
मैं फिर दौड़ने लगूंगी ....
वाह ...यहां भी मौजूद हैं यह सब धमा-चौकड़ी मचाने के लिये ...रश्मि दी बधाई इस हृदयस्पर्शी रचना के लिये ....।
बेग़र्ज़ , बेलौस हर खि़दमत को कर जाती है माँ
Nice post.
माँ से इस तरह लिपटू की फिर से बच्चा हो जाऊ |
बहुत खुबसूरत रचना |
बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|