Skip to main content

तू ऐसी तो न थी माँ ---?






तुझे चाह था टूटकर मैने माँ---  
हर घड़ी, हर पल,  
तुझे महसूस किया था माँ,
दिल के पास --बहुत पास माँ, 
आज भी हे ,
दिल में ,
तेरे प्यार का एहसास ,
तुझसे यह उम्मीद तो न थी माँ ---
की तू मुझे यू अकेला छोड़ जाएगी ---
दिल मायूस  मेरा,
ज़बा खामोश है ,
आँखों से बहती आंसू की धारा,
हर आंसू का कतरा --
तुझसे शिकायत करता हे माँ ---
तू ऐसी तो न थी माँ ---
तू ऐसी तो न थी माँ ---?


माँ की यादे , माँ का प्यार मेरे लिए सिर्फ यादे हे जो मै महसूस करती हु वही लिखती हु -------दर्शन !  )            

Comments

maa kabhi nahi jati , haath badhaao mil jati hai, chum leti hai , mann ke sare tufaan per jadui chhadi chalati hai...
DR. ANWER JAMAL said…
जो अश्क गूंगे थे वो अर्ज़े हाल करने लगे
हमारे बच्चे हमीं से सवाल करने लगे

ऐसा ही कुछ आपकी माता जी भी आपसे कहती होंगी।
vandana gupta said…
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/
जनाब अनवर साहब,आपने ठीक फरमाया, कभी कभी बच्चे भी माँ -बाप से सवाल करते हे ? अपनी इस उम्र मे आकर भी मुझे अपनी माँ की कमी खलती हे --अपने हम-उम्र की माँऐ जब अपने बच्चो की खेर- खबर करती हे तो दिल में एक हुक सी उठती हे की मेरी माँ क्यों नही ? तब आता हे अपनी किस्मत पर,अपने खुदा पर और अपनी माँ पर भी गुस्सा ! क्यों अकेला छोड़ गई मुझे ?जब मै सबको माँ के बारे में लिखता देखती हु तो सोचती हु की क्या एहसास लिखू जबकि मै इस एहसास से ही महरूम हु --यदि कुछ गलत लिखा हो तो माफ़ी चाहती हु |
DR. ANWER JAMAL said…
@ दर्शन जी ! जो पीड़ा आपके दिल में है उसे व्यक्त होना ही चाहिए .
आपकी पीड़ा आपकी मां तक पहुँचती है और वो आपको दुलारती भी हैं .
मैं कोई अलंकार में नहीं कह रहा हूँ .
आप जब चाहे अपनी मां से मिल सकती है और उनसे बातें भी कर सकती हैं.
हर चीज़ आपके विश्वास और आपकी प्रार्थना पर टिकी हुई है .
जिसके पास यह दोनों हैं उसे विधि मैं बता सकता हूँ .
बिलकुल आसान और निरापद विधि है.
मां कभी जुदा नहीं होती और
रूहों से कभी फासला नहीं होता .
बहुत सुंदर संवेदनशील रचना गढ़ी है दर्शन जी ...... आभार

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ

माँ तो माँ है...

कितना सुन्दर नाम है इस ब्लॉग का प्यारी माँ .हालाँकि प्यारी जोड़ने की कोई ज़रुरत ही नहीं है क्योंकि माँ शब्द में संसार का सारा प्यार भरा है.वह प्यार जिस के लिए संसार का हर प्राणी भूखा है .हर माँ की तरह मेरी माँ भी प्यार से भरी हैं,त्याग की मूर्ति हैं,हमारे लिए उन्होंने अपने सभी कार्य छोड़े और अपना सारा जीवन हमीं पर लगा दिया. शायद सभी माँ ऐसा करती हैं किन्तु शायद अपने प्यार के बदले में सम्मान को तरसती रह जाती हैं.हम अपने बारे में भी नहीं कह सकते कि हम अपनी माँ के प्यार,त्याग का कोई बदला चुका सकते है.शायद माँ बदला चाहती भी नहीं किन्तु ये तो हर माँ की इच्छा होती है कि उसके बच्चे उसे महत्व दें उसका सम्मान करें किन्तु अफ़सोस बच्चे अपनी आगे की सोचते हैं और अपना बचपन बिसार देते हैं.हर बच्चा बड़ा होकर अपने बच्चों को उतना ही या कहें खुद को मिले प्यार से कुछ ज्यादा ही देने की कोशिश करता है किन्तु भूल जाता है की उसका अपने माता-पिता की तरफ भी कोई फ़र्ज़ है.माँ का बच्चे के जीवन में सर्वाधिक महत्व है क्योंकि माँ की तो सारी ज़िन्दगी ही बच्चे के चारो ओर ही सिमटी होती है.माँ के लिए कितना भी हम करें वह माँ

"माँ ममता और बचपन"

माँ की ममता एक बच्चे के जीवन की अमूल्य धरोहर होती है । माँ की ममता वो नींव का पत्थर होती है जिस पर एक बच्चे के भविष्य की ईमारत खड़ी होती है । बच्चे की ज़िन्दगी का पहला अहसास ही माँ की ममता होती है । उसका माँ से सिर्फ़ जनम का ही नही सांसों का नाता होता है । पहली साँस वो माँ की कोख में जब लेता है तभी से उसके जीवन की डोर माँ से बंध जाती है । माँ बच्चे के जीवन के संपूर्ण वि़कास का केन्द्र बिन्दु होती है । जीजाबाई जैसी माएँ ही देश को शिवाजी जैसे सपूत देती हैं । जैसे बच्चा एक अमूल्य निधि होता है वैसे ही माँ बच्चे के लिए प्यार की , सुख की वो छाँव होती है जिसके तले बच्चा ख़ुद को सुरक्षित महसूस करता है । सारे जहान के दुःख तकलीफ एक पल में काफूर हो जाते हैं जैसे ही बच्चा माँ की गोद में सिर रखता है ।माँ भगवान का बनाया वो तोहफा है जिसे बनाकर वो ख़ुद उस ममत्व को पाने के लिए स्वयं बच्चा बनकर पृथ्वी पर अवतरित होता है । एक बच्चे के लिए माँ और उसकी ममता का उसके जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । मगर हर बच्चे को माँ या उसकी ममता नसीब नही हो पाती । कुछ बच्चे जिनके सिर से माँ का