माँ के गर्भ मे
अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में जाना सीखा
निकलने की कला जाने
उससे पहले , निद्रा ने माँ को आगोश में लिया
भविष्य निर्धारित किया
चक्रव्यूह उसका काल बना !
मेरी आंखें, मेरा मन , मेरा शरीर
मंत्रों की प्रत्यंचा पर जागा है
तुम्हारे चक्रव्यूह को अर्जुन की तरह भेदा है
मेरी आशाओं की ऊँगली थाम कर सो जाओ
विश्वास रखो -
ईश्वर मार्ग प्रशस्त करेंगे
अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में जाना सीखा
निकलने की कला जाने
उससे पहले , निद्रा ने माँ को आगोश में लिया
भविष्य निर्धारित किया
चक्रव्यूह उसका काल बना !
मेरी आंखें, मेरा मन , मेरा शरीर
मंत्रों की प्रत्यंचा पर जागा है
तुम्हारे चक्रव्यूह को अर्जुन की तरह भेदा है
मेरी आशाओं की ऊँगली थाम कर सो जाओ
विश्वास रखो -
ईश्वर मार्ग प्रशस्त करेंगे
Comments
किस तरह जुडती है हमारी संवेदनाएं एक साथ , अपनी पुराणी कविता बहुत याद आ रही है !
विश्वास रखो -
ईश्वर मार्ग प्रशस्त करेंगे
यही विश्वास हरदम साथ रहता है मां का ...।
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
Nice post.