सबकी चिंता को अपना बना लेती हो
अबका दर्द समेट
खुद की आँखे भीगा लेती हो
पर
तुम अपनी चिंता कब करोगी माँ???
बोलो न माँ...
हमको दुःख बतलाने को कहती हो
खुद अपने आंसू छिपाती हो
पर
तुम अपना दर्द हमें कब बताओगी माँ???
बोलो न माँ...
सबके पसंद का खाना बनाती हो
खुद कुछ भी खा लेती हो
पर
अपनी पसंद का खाना कब बनाओगी माँ???
बोलो न माँ...
हमें मजबूत होना सिखाती हो
हमारी ज़रा-सी चोट पर खुद सिहर जाती हो
दौड़ कर उसमें मलहम लगाती हो
उसे फूंक-फूंक सहलाती हो
खुद को लग जाये तो यूँही कह टाल जाती हो...
पर
अपने जख्मों को कब सहलओगी,
उनमें मलहम कब लगाओगी माँ???
बोलो न माँ...
जब भी बाज़ार जाती हो
सबके लिए सामान लाती हो
अपना ही कुछ भूल जाती हो
पर
तुम अपने लिए कब खुद कुछ लोगी माँ???
बोलो न माँ...
बचपन से सच बोलना सिखाया हमें
खुद कई बार झूठी हंसीं हंस जाती हो
पर
तुम हमेशा खुल के कब खिल्खिलोगी माँ???
बोलो न माँ...
हमें प्यार से रहना सिखाती हो
खुद कई बार हमारी खुशियों के लिए लड़ जाती हो
पर
अपनी खुशियों के लिए हक़ कब जताओगी माँ???
बोलो न माँ...
आज वादा करो...
अब किसी की चिंता में आंसू नहीं बहाओगी...
अपनी पसंद बताओगी...
खुल के खिलाखिलाओगी...
खुद को मलहम लगाओगी...
अपनी खुशियों का हक़ जताओगी...
फ़िर अपनी आँखों में चमक ले आओगी....
वादा करती हो न माँ...
बोलो न माँ...
आज "प्रोमिस डे" है माँ...
अबका दर्द समेट
खुद की आँखे भीगा लेती हो
पर
तुम अपनी चिंता कब करोगी माँ???
बोलो न माँ...
हमको दुःख बतलाने को कहती हो
खुद अपने आंसू छिपाती हो
पर
तुम अपना दर्द हमें कब बताओगी माँ???
बोलो न माँ...
सबके पसंद का खाना बनाती हो
खुद कुछ भी खा लेती हो
पर
अपनी पसंद का खाना कब बनाओगी माँ???
बोलो न माँ...
हमें मजबूत होना सिखाती हो
हमारी ज़रा-सी चोट पर खुद सिहर जाती हो
दौड़ कर उसमें मलहम लगाती हो
उसे फूंक-फूंक सहलाती हो
खुद को लग जाये तो यूँही कह टाल जाती हो...
पर
अपने जख्मों को कब सहलओगी,
उनमें मलहम कब लगाओगी माँ???
बोलो न माँ...
जब भी बाज़ार जाती हो
सबके लिए सामान लाती हो
अपना ही कुछ भूल जाती हो
पर
तुम अपने लिए कब खुद कुछ लोगी माँ???
बोलो न माँ...
बचपन से सच बोलना सिखाया हमें
खुद कई बार झूठी हंसीं हंस जाती हो
पर
तुम हमेशा खुल के कब खिल्खिलोगी माँ???
बोलो न माँ...
हमें प्यार से रहना सिखाती हो
खुद कई बार हमारी खुशियों के लिए लड़ जाती हो
पर
अपनी खुशियों के लिए हक़ कब जताओगी माँ???
बोलो न माँ...
आज वादा करो...
अब किसी की चिंता में आंसू नहीं बहाओगी...
अपनी पसंद बताओगी...
खुल के खिलाखिलाओगी...
खुद को मलहम लगाओगी...

अपनी खुशियों का हक़ जताओगी...
फ़िर अपनी आँखों में चमक ले आओगी....
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बोलो न माँ...
आज "प्रोमिस डे" है माँ...
Comments
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माँ की नज़ीर ला न सके कायनात में
हक़ = सत्य , ईश्वर
ज़ात = अस्तित्व
नज़ीर = मिसाल
Nice post.
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http://pyarimaan.blogspot.com