मां-बाप
क़फ़स में हंसते थे , गुलशन में जाके रोने लगे
परिन्दे अपनी कहानी सुनाके रोने लगे
बिछुड़ने वाले अचानक जो बरसों बाद मिले
वो मुस्कुराने लगे , मुस्कुराके रोने लगे
खुशी मिली तो खुशी में शरीक सबको किया
मिले जो ग़म तो अकेले में जाके रोने लगे
फिर आई ईद तो अब के बरस भी कुछ मां-बाप
गले से अपने खिलौने लगाके रोने लगे
- शफ़क़ बिजनौरी , निकट मदीना प्रेस
बिजनौर - 246701
परिन्दे अपनी कहानी सुनाके रोने लगे
बिछुड़ने वाले अचानक जो बरसों बाद मिले
वो मुस्कुराने लगे , मुस्कुराके रोने लगे
खुशी मिली तो खुशी में शरीक सबको किया
मिले जो ग़म तो अकेले में जाके रोने लगे
फिर आई ईद तो अब के बरस भी कुछ मां-बाप
गले से अपने खिलौने लगाके रोने लगे
- शफ़क़ बिजनौरी , निकट मदीना प्रेस
बिजनौर - 246701
Comments
धन्यवाद !
@ जनाब शरीफ साहब ! आपकी टिप्पणी माँ बाप और उनके खिलौनों के बीच में नहीं आ रही है बल्कि उनके ज़िक्र के नीचे आ रही है और यहाँ आपकी टिप्पणी का आना बहुत ज़रूरी है ।
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" खुदा से भी पहले हमेँ याद आयेगा कोई....... गजल "
ग़ज़ल
दिल लुटने का सबब
हम को किसके ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही
किसने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फिर सही
दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
नाम आएगा तुम्हारा ये कहानी फिर सही
नफ़रतों के तीर खाकर दोस्तों के शहर में
हमने किस किस को पुकारा ये कहानी फिर सही
क्या बताएं प्यार की बाज़ी वफ़ा की राह में
कौन जीता कौन हारा ये कहानी फिर सही
-Masroor Anwar
'हिंदुस्तान , पृष्ठ 9 , 7-1-2011'