Skip to main content

चार बच्चों की मां ने प्रेमी संग मिलकर पति को जिंदा जलाया

चार बच्चों की मां फुलको देवी ने अपने पति चंदर भुईयां को घर के अंदर ही जिंदा जला दिया। यह घटना होलिका दहन की रात शनिवार की है। इस मामले में पुलिस ने मृतक के पुत्र के बयान के आधार पर आरोपी महिला को गिरफ्तार कर लिया है। इधर घटना के 24 घंटे बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंचकर आग से झुलसे चंदर भुइयां के शव को अपने कब्जे में लेकर उसे पोस्टमार्टम के लिए सोमवार को चतरा भेजा दिया है। पुलिस के अनुसार घटना के पीछे प्रेम-प्रसंग का मामला है।
जगन भुईयां का पुत्र चंदर भुईयां टंडवा थाना क्षेत्र के खधैया गांव का रहनेवाला था। फुलको देवी ने 19 मार्च की रात होलिका दहन से पूर्व अपने ही घर में चंदर को बंद कर पहले उसके साथ मारपीट की और बाद में अपने प्रेमी के साथ मिलकर उसे जिंदा जला दिया। अपने पति को जलाने में उसने केरोसिन तेल का प्रयोग किया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार लाश के हाथ-पांव बंधे थे।
घटना की सूचना मिलते ही थाना प्रभारी रामयश प्रसाद ने घटनास्थल पर पहुंच कर पूरे मामले का जायजा लिया और तत्काल उसकी पत्नी को गिरफ्तार कर लिया। घटना के वक्त मृतक के माता-पिता रामगढ़ जिले के तोरपा में थे। आरोपी महिला चौकीदार बिरल भुईयां की पुत्री है। प्रेमी के नाम का अभी खुलासा नहीं हो पाया है।
साभार 

Comments

छि ! धिक्कार है ऐसी नारी पर ! नारी के नाम पर कलंक !
DR. ANWER JAMAL said…
वाक़ई धिक्कार है ऐसी औरत पर जो माँ होने का हक़ अदा न कर सकी . उसने एक औरत और एक माँ दोनों ही पाक नामों पर कलंक लगाया है.
अपने बच्चों के बाप को उसने मार डाला और खुद वह जेल में रहेगी . इस बेरहम समाज में उसके चार बच्चों का जीना बड़ा मुश्किल हो जायेगा .
लेकिन इसी के साथ हमें यह भी सोचना चाहिए कि प्रेमी के साथ मिलकर पति को मारने की घटनाएँ हमारे समाज में आम क्यों हैं ?
अवैध संबंधों की भरमार क्यों है ?
अगर एक औरत अपने पति से किसी वजह से संतुष्ट नहीं है तो उसे हमारा समाज आजीवन उसके साथ रहने के लिए क्यों मजबूर करता है ?
ऐसे लावारिस बच्चों के लिए हमारे पास मुनासिब बंदोबस्त क्यों नहीं हैं जो कि हालात के सताए हुए हैं ?
अगर हम चाहते हैं कि ऐसी घटनाएँ हमारे समाज में न हुआ करें तो हमें उन वजहों पर भी ध्यान देना चाहिए जिनकी वजह से ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं.
S R Bharti said…
Ghatna ka marmik lekhan
Harday drvit ho gaya.

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उन...

माँ तो माँ है...

कितना सुन्दर नाम है इस ब्लॉग का प्यारी माँ .हालाँकि प्यारी जोड़ने की कोई ज़रुरत ही नहीं है क्योंकि माँ शब्द में संसार का सारा प्यार भरा है.वह प्यार जिस के लिए संसार का हर प्राणी भूखा है .हर माँ की तरह मेरी माँ भी प्यार से भरी हैं,त्याग की मूर्ति हैं,हमारे लिए उन्होंने अपने सभी कार्य छोड़े और अपना सारा जीवन हमीं पर लगा दिया. शायद सभी माँ ऐसा करती हैं किन्तु शायद अपने प्यार के बदले में सम्मान को तरसती रह जाती हैं.हम अपने बारे में भी नहीं कह सकते कि हम अपनी माँ के प्यार,त्याग का कोई बदला चुका सकते है.शायद माँ बदला चाहती भी नहीं किन्तु ये तो हर माँ की इच्छा होती है कि उसके बच्चे उसे महत्व दें उसका सम्मान करें किन्तु अफ़सोस बच्चे अपनी आगे की सोचते हैं और अपना बचपन बिसार देते हैं.हर बच्चा बड़ा होकर अपने बच्चों को उतना ही या कहें खुद को मिले प्यार से कुछ ज्यादा ही देने की कोशिश करता है किन्तु भूल जाता है की उसका अपने माता-पिता की तरफ भी कोई फ़र्ज़ है.माँ का बच्चे के जीवन में सर्वाधिक महत्व है क्योंकि माँ की तो सारी ज़िन्दगी ही बच्चे के चारो ओर ही सिमटी होती है.माँ के लिए कितना भी हम करें वह माँ ...

माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.